BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।

उत्तर -

प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण

१.

तत्र प्रत्यक्षज्ञानकरणं प्रत्यक्षम्। इन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम्।

सन्दर्भ - प्रस्तुत अवतरण तर्कसंग्रहकार श्री अन्नम्मभट्ट की कृति 'तर्कसंग्रहः' के प्रत्यक्ष-प्रमाण-निरूपण से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग - इस गद्यांश में प्रत्यक्ष ज्ञान का निरूपण किया गया है।

व्याख्या - उन्हीं चार प्रमाणों में प्रत्यक्ष ज्ञान के कारण को 'प्रत्यक्ष' प्रमाण कहते हैं। घटादि में चाक्षुषादि प्रत्यक्ष ज्ञान में व्यापारवद् चक्षुरादि इन्द्रिय ही कारण हैं। छः प्रत्यक्ष प्रमाण होते हैं। इन्हीं छहों इन्द्रियों के उनके अपने विषय के साथ सम्बन्ध होने से उत्पन्न जो ज्ञान है वही प्रत्यक्ष ज्ञान या प्रत्यक्ष प्रमा है।

विशेष - ईश्वर का प्रत्यक्ष किसी भी इन्द्रिय से नहीं होता। तब इस लक्षण की ईश्वर के प्रत्यक्ष में अव्याप्ति होगी। इस शंका का समाधान यह है कि प्रस्तुत लक्षण जन्य के प्रत्यक्ष का लक्षण है न कि नित्य ईश्वर के प्रत्यक्ष का।

२.

तद् द्विविधं निर्विकल्पकं सविकल्पकं च। तत्र निष्प्रकारंक ज्ञानं निर्विकल्पकम् यथेदं किञ्चित। सप्रकारकं ज्ञान सविकल्पकम्, यथा डित्थोऽयं ब्रह्मणोऽपं श्यामोऽयम्।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।
प्रसंग -इस अवतरण निर्विकल्पक का विवेचन किया गया है।

व्याख्या - निर्विकल्प और सविकल्पक के भेद से प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का होता है। निष्प्रकार : अर्थात् विशेषण विशेष्य और सम्बन्धादि से शून्य प्रत्यक्ष ज्ञान को निर्विकल्पक कहते हैं। जैसे किसी पदार्थ दूर से दिखाई देने पर यह कुछ है' यह ज्ञान। विशेषणादि प्रकारों से युक्त ज्ञान को सविकल्पक कहते हैं। जैसे 'यह डित्थ नामक व्यक्ति है यह ब्राह्मण है यह श्याम वर्ण का है। इत्यादि ज्ञान।

विशेष - इस अवतरण का तात्पर्य यह है कि विशेषण विशेष्य एवं उन दोनों के सम्बन्ध जिस ज्ञान के विषय न हों वहीं निर्विकल्पक कहा जाता है। सविकल्पक इसके विपरीत प्रकार युक्त होता है।

३.

प्रत्यक्ष ज्ञान हेतु रिन्द्रियार्थ सन्निकर्षः षड्विधः संयोगः, संयुक्त समवायः, संयुक्त समवेत समवायः, समवेत समवायः, विशेषण विशेष्य भावश्चेति।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।
प्रसंग - इन पंक्तियों में तर्कसंग्रहकार ने प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रकार का वर्णन किया है।
व्याख्या - प्रत्यक्ष ज्ञान का कारण इन्द्रियार्थसन्निकर्ष छः प्रकार का होता है- १. संयोग २. संयुक्त समवाय ३. संयुक्त समवेत समवाय
४. समवाय ५. समवेतसमवाय तथा ६. विशेषण विशेष्यभाव।

प्रत्यक्ष ज्ञान का कारण भूत इन्द्रिय और पदार्थ के बीच का सम्बन्ध तो छः प्रकार का होता ही है स्वयं प्रत्यक्ष ज्ञान भी छः प्रकार का होता है १ घ्राणज २. रासन ३. चाक्षुष ४ स्रोत या भ्रावण ५. त्वचा और ६. मानस।

विशेष - इस अवतरण में प्रत्यक्ष से तात्पर्य लौकिक प्रत्यक्ष से ही है उसके दूसरे प्रकार अलौकिक प्रत्यक्ष से नहीं।

४.

चक्षुषा घट प्रत्यक्षजनने संयोगः सन्निकर्षः। घटरूप प्रत्यक्षजनने संयुक्तसमवायः सन्निकर्षः, चक्षुः संयुक्ते घटे स्वरूपस्य समवायात्। रूपत्व - सामान्य प्रत्यक्षे संयुक्त समवेत समवायसन्निकर्षः। चक्षुः संयुक्ते घटे रूपं समवेतं तत्र रूपत्वस्य समवायत्।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - जिस इन्द्रिय का अपने ग्राह्य विषय के साथ जो सन्निकर्ष होता है उसी का वर्णन इस अवतरण में हुआ है।

व्याख्या - चक्षुरिन्द्रिय द्वारा घटादि द्रव्य का प्रत्यक्ष ज्ञान होने में संयोग सम्बन्ध होता है। घटत्व में समवाय सम्बन्ध से वर्तमान उसके रूप गुण का प्रत्यक्ष ज्ञान होने से संयुक्त समवाय सम्बन्ध होता है, क्योंकि पहले चक्षु का घट (विषय) से संयोग होता है, फिर उस घट में समवेत रूप के साथ समवाय सम्बन्ध से वर्तमान रूपत्व जाति के प्रत्यक्ष होने में संयुक्त समवेत समवाय सम्बन्ध होता है। क्योंकि पहले चक्षु का घट से संयोग, फिर उसमें समवेत रूप के साथ समवाय और अन्त में उसमें समवेत रूपत्व सामान्य (जाति) के साथ समवाय सम्बन्ध होता है। इस प्रकार संयुक्त समवेत समवाय सम्बन्ध से रूपत्व का ज्ञान होता है।

विशेष - चक्षुरिन्द्रिय का उसके विषय घट के साथ जो संयोग सन्निकर्ष कहा गया उसका कारण दोनों का द्रव्य होना है। घट पृथिवी विकार होने से पार्थिव द्रव है और चक्षुरिन्द्रिय तेजो-विकार होने से तैजस। जैसे घटादि दृश्य द्रव्य के चाक्षुष प्रत्यक्ष में संयोग सन्निकर्ष निरूपित किया गया वैसे ही स्पृश्य शय्यादि द्रव्य के त्वाच प्रत्यक्ष एवं च आत्म-द्रव्य के मानस (मनः कृत) प्रत्यक्ष में भी संयोग ही सन्निकर्ष होता है।

५.

श्रोत्रेण शब्दसाक्षात्कारे समवायः सम्बन्धः। कर्णविवरवर्त्याकाशस्य श्रोत्रत्वाच्छब्दस्याकाशगुणत्वाद् गुणगुणिनोश्च समवायात्। शब्दत्वसाक्षात्कारे समवेत समवायः सन्निकर्षः। श्रोतसमवेते शब्दे शब्दत्वस्य समवायात्।

सन्दर्भ - पूर्ववत्

प्रसंग - इन पंक्तियों में तर्कसंग्रहकार ने समवेत सम्बन्ध का निरूपण किया है।

व्याख्या - श्रोत के द्वारा शब्द का प्रत्यक्ष होने में समवस्य सम्बन्ध होता है क्योंकि कर्णविवरण वर्ती आकाश ही श्रोत्रेन्द्रिय है तथा शब्द आकाश का गुण है और गुण-गुणी का सम्बन्ध समवाय ही होता है। . शब्द में समवेत शब्दत्व जाति के प्रत्यक्ष में समवेत समवाय सन्निकर्ष होता है क्योंकि शब्द के श्रोत समवेत होने पर उसमें समवेत शब्दत्व जाति के साथ श्रोत्र का समवेतसमवाय ही सम्बन्ध होगा।

६.

अभावप्रत्यक्षे विशेषण विशेषभावः सन्निकर्ष:। 'घटाभावष्द् भूतलम्' इत्यत्र चक्षुः संयुक्ते भूतले घटाभावस्य विशेषणत्वात्।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस गद्यांश में विशेषण विशेष्य भाव पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या - 'अभाव' पदार्थ के प्रत्यक्ष में विशेषणविशेष्यभाव सम्बन्ध होता है। यह भूतल घट के अभाव से युक्त या विशिष्ट हैं - इस ज्ञान में चक्षुरिन्द्रिय से संयुक्त भूतल (विशेष्य) में घटाभाव विशेषण है।

विशेष - 'घटाभाक्वद् भूतलम्' में विशेषण विशेष्यभाव सन्निकर्ष से घटाभाव का प्रत्यक्ष होता है। अर्थात् चक्षुरिन्द्रिय से भूतल में घटाभाव विशेषण के रूप में हैं और भूतल विशेष्य है।

७.

एवं सन्निकर्ष षट्कजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम् तत्करणमिन्द्रियम्। तस्मादिन्द्रियं प्रत्यक्ष प्रमाणमिति सिद्धम्।

सन्दर्भ - पूर्ववत।
प्रसंग - इन पंक्तियों में प्रत्यक्ष-प्रकरण का उपसंहार तर्कसंग्रहाकार ने इस प्रकार किया है।

व्याख्या - इस प्रकार पूर्वोक्ति संयोगादि छः निष्कर्षो से उत्पन्न ज्ञान प्रत्यक्ष (प्रमा) है। उसका 'कारण' अर्थात् असाधारण कारण इन्द्रिय है। इसलिए इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण है यह सिद्ध है।

विशेष - अनन्तः प्रत्यक्ष प्रमाण को तर्कसंग्रहकार ने सिद्ध कर दिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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